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एक ज्ञान बाहर है, एक प्रकाश बाहर है। अगर आपको गणित सीखनी है, केमिस्ट्री सीखनी है, फिजिक्स सीखनी है, इंजीनियरिंग सीखनी है, तो आप किसी स्कूल में भरती होंगे, किताब पढ़ेंगे, परीक्षाएं होंगी और सीख लेंगे। यह लर्निंग है; नॉलेज नहीं। यह सीखना है; ज्ञान नहीं। विज्ञान सीखा जाता है, विज्ञान का कोई ज्ञान नहीं होता। लेकिन धर्म सीखा नहीं जाता, उसका ज्ञान होता है। उसकी लर्निंग नहीं होती, उसकी नॉलेज होती है। एक प्रकाश बाहर है, जिसे सीखना होता है; एक प्रकाश भीतर है, जिसे उघाड़ना होता है, जिसे डिस्कवर करना होता है। ओशो
अनुक्रम
#1: छाया-जगत का बोध
#2: सीखे हुए ज्ञान से मुक्ति
#3: सत्य का बोध
#4: स्वतंत्रता, सरलता, शून्यता
#5: प्रश्न-शून्य चित्त
"मन चित चातक ज्यूं रटै, पिव पिव लागी प्यास।
नदी बह रही है, तुम प्यासे खड़े हो; झुको, अंजुली बनाओ हाथ की, तो तुम्हारी प्यास बुझ सकती है। लेकिन तुम अकड़े ही खड़े रहो, जैसे तुम्हारी रीढ़ को लकवा मार गया हो, तो नदी बहती रहेगी तुम्हारे पास और तुम प्यासे खड़े रहोगे। हाथ भर की ही दूरी थी, जरा से झुकते कि सब पा लेते। लेकिन उतने झुकने को तुम राजी न हुए। और नदी के पास छलांग मार कर तुम्हारी अंजुली में आ जाने का कोई उपाय नहीं है। और आ भी जाए, अगर अंजुली बंधी न हो, तो भी आने से कोई सार न होगा।
शिष्यत्व का अर्थ है: झुकने की तैयारी। दीक्षा का अर्थ है: अब मैं झुका ही रहूंगा। वह एक स्थायी भाव है। ऐसा नहीं है कि तुम कभी झुके और कभी नहीं झुके। शिष्यत्व का अर्थ है, अब मैं झुका ही रहूंगा; अब तुम्हारी मर्जी। जब चाहो बरसना, तुम मुझे गैर-झुका न पाओगे।"—ओशो
सुप्रसिद्ध संत शेख फरीद के कुछ अनूठे पदों के माध्यम से ओशो के दस अमृत प्रवचनों का संकलन। इस वार्तालाप में प्रति दूसरे दिन ओशो ने जिज्ञासुओं की विभिन्न जिज्ञासाओं और प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। ‘शेख फरीद प्रेम के पथिक हैं और जैसा प्रेम का गीत फरीद ने गाया है; वैसा किसी ने नहीं गाया। कबीर भी प्रेम की बात करते हैं, लेकिन ध्यान की भी बात करते हैं। दादू भी प्रेम की बात करते हैं, लेकिन ध्यान की बात को बिलकुल भूल नहीं जाते।
मैं जिसको जीवन कहता हूं, वह तुम्हारे मन का जीवन नहीं है। धन-पद पाने का; प्रतिष्ठा, यश, सम्मान, सत्कार पाने...
सत्य शाश्वत है, सनातन है, समयातीत है। जो बदलता है वह स्वप्न है। जो नहीं बदलता वही सत्य है। परिवर्तित...