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सत्र--दूसरा
मैं क्षमा चाहता हूं, क्योंकि कुछ पुस्तकों का उल्लेख आज सुबह मुझे करना चाहिए था, लेकिन मैंने किया नहीं। जरथुस्त्र, मीरदाद, च्वांग्त्सु, लाओत्सु, जीसस और कृष्ण से मैं इतना अभिभूत हो गया था कि मैं कुछ ऐसी पुस्तकों को भूल ही गया जो कि कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। मुझे भरोसा नहीं आता कि खलील जिब्रान की ‘दि प्रोफेट’ को मैं कैसे भूल गया। अभी भी यह बात मुझे पीड़ा दे रही है। मैं निर्भार होना चाहता हूं--इसीलिए मैं कहता हूं मुझे दुख है, किंतु किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं।
कैसे मैं उस पुस्तक को भूल गया जो परम शिखर है: ‘दि बुक ऑफ दि सूफी़ज!’ शायद इसीलिए भूल गया क्योंकि इसमें कुछ है ही नहीं, बस खाली पन्ने। पिछले बारह सौ वर्षों से सूफियों ने इसे परम श्रद्धापूर्वक संजोया है, वे इसे खोलते हैं और पढ़ते हैं। किसी को भी आश्चर्य होता है कि वे पढ़ते क्या हैं। जब बहुत लंबे समय तक खाली पन्नों को देखो तो स्वयं पर ही लौट आने के लिए बाध्य हो जाते हो। यही असली अध्ययन है--असली काम।
‘दि बुक’ को मैं कैसे भूल गया? अब कौन मुझे क्षमा करेगा? ‘दि बुक’ का उल्लेख सर्वप्रथम होना चाहिए, अंत में नहीं। इसका अतिक्रमण तो हो ही नहीं सकता। इससे बेहतर पुस्तक रची कैसे जा सकती है, जिसमें कुछ भी न हो, शून्य का संदेश हो?
अपने नोट्स में देवगीत, ना-कुछ, नथिंगनेस को ना-कुछ-पन ही लिखना। अन्यथा ना-कुछ का नकारात्मक अर्थ होता है--खालीपन। पर ऐसा नहीं है। इसका अर्थ है ‘पूर्णता।’ पूरब में खालीपन दूसरे ही संदर्भ में प्रयुक्त होता है...‘शून्यता।’
अपने एक संन्यासी को मैंने ‘शून्यो’ नाम दिया है, लेकिन वह बेवकूफ अपने को डॉक्टर इचलिंग कहता रहता है। अब इससे अधिक बेवकूफी क्या होगी? ‘डॉक्टर इचलिंग’--कितना भद्दा नाम है! और डॉक्टर इचलिंग बनने के लिए उसने अपनी दाढ़ी मूंडवा दी, क्योंकि दाढ़ी में वह थोड़ा सुंदर लगता था।
पूरब में शून्यता--खालीपन का अर्थ खालीपन नहीं है जैसा अंग्रेजी भाषा में होता है। इसका अर्थ है पूर्णता, अतिशय होना, इतना पूर्ण कि और किसी कुछ की आवश्यकता ही न रहे। ‘दि बुक’ का यही संदेश है। कृपया सूची में इसे सम्मिलित कर लो।
दरिया के शब्द सुनो, जिंदगी की थोड़ी तलाश करो–‘दरिया कहै सब्द निरबाना।’ ये प्यारे सूत्र हैं, इनमें बड़ा माधुर्य है,...
“‘सदगुरु के शब्द तो वे ही हैं जो समाज के शब्द हैं। और कहना है उसे कुछ, जिसका समाज को...
सुप्रसिद्ध संत शेख फरीद के कुछ अनूठे पदों के माध्यम से ओशो के दस अमृत प्रवचनों का संकलन। इस वार्तालाप में प्रति दूसरे दिन ओशो ने जिज्ञासुओं की विभिन्न जिज्ञासाओं और प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। ‘शेख फरीद प्रेम के पथिक हैं और जैसा प्रेम का गीत फरीद ने गाया है; वैसा किसी ने नहीं गाया। कबीर भी प्रेम की बात करते हैं, लेकिन ध्यान की भी बात करते हैं। दादू भी प्रेम की बात करते हैं, लेकिन ध्यान की बात को बिलकुल भूल नहीं जाते।
स्वामी ज्ञानभेद की नवीनतम कृति “चल ओशो के गांव में” पढ़ते हुए जब हम प्रकृति के रोमांच को अनुभव करते...
जीवन-रूपांतरण के सात सूत्र "करुणा और क्रांति’--ऐसा शब्दों का समूह मुझे अच्छा नहीं मालूम पड़ता है। मुझे तो लगता है--करुणा यानी क्रांति। करुणा अर्थात क्रांति। कम्पैशन एंड रेवोल्यूशन ऐसा नहीं, कम्पैशन मीन्स रेवोल्यूशन। ऐसा नहीं कि करुणा होगी--और क्रांति होगी। अगर करुणा आ जाए, तो क्रांति अनिवार्य है। क्रांति सिर्फ करुणा की पड़ी हुई छाया से ज्यादा नहीं है। और जो क्रांति करुणा के बिना आएगी, वह बहुत खतरनाक होगी। ऐसी बहुत क्रांतियां हो चुकी हैं। और वे जिन बीमारियों को दूर करती हैं, उनसे बड़ी बीमारियों को पीछे छोड़ जाती हैं।" ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: मनुष्य एक रोग क्यों हो गया है? ध्यान का अर्थ है : समर्पण, टोटल लेट-गो मन के कैदखाने से मुक्ति के उपाय? जिन्दगी के रूपांतरण का क्या मतलब है? करुणा, अहिंसा, दया, प्रेम इन सब में क्या फर्क है?