Delivery and returns
Price:
₹899.00
Quick Overview
‘यह पुस्तक आंख वाले व्यक्ति की बात है। किसी सोच-विचार से, किसी कल्पना से, मन के किसी खेल से इसका जन्म नहीं हुआ; बल्कि जन्म ही इस तरह की वाणी का तब होता है, जब मन पूरी तरह शांत हो गया हो। और मन के शांत होने का एक ही अर्थ होता है कि मन जब होता ही नहीं। क्योंकि मन जब भी होता है, अशांत ही होता है।’ ‘जहां मन खो जाता है वहां आकाश के रहस्य प्रकट होने शुरू हो जाते हैं।’ ‘ब्लावट्स्की की यह पुस्तक ऐसी ही है। हवा का एक झोंका है ब्लावट्स्की। और कोई उससे बहुत महानतर शक्ति उस पर आविष्ट हो गयी है, और वह हवा का झोंका इस सुगंध को ले आया है।’ ‘इस पुस्तक के एक-एक सूत्र को समझपूर्वक अगर प्रयोग किया, तो जीवन से वासना ऐसे झड़ जाती है, जैसे कोई धूल से भरा हुआ आये और स्नान कर ले तो सारी धूल झड़ जाए। या कोई थका-मांदा, किसी वृक्ष की छाया के नीचे विश्राम कर ले और सारी थकान विसर्जित हो जाए।’ ओशो
‘यह पुस्तक आंख वाले व्यक्ति की बात है। किसी सोच-विचार से, किसी कल्पना से, मन के किसी खेल से इसका जन्म नहीं हुआ; बल्कि जन्म ही इस तरह की वाणी का तब होता है, जब मन पूरी तरह शांत हो गया हो। और मन के शांत होने का एक ही अर्थ होता है कि मन जब होता ही नहीं। क्योंकि मन जब भी होता है, अशांत ही होता है।’ ‘जहां मन खो जाता है वहां आकाश के रहस्य प्रकट होने शुरू हो जाते हैं।’ ‘ब्लावट्स्की की यह पुस्तक ऐसी ही है। हवा का एक झोंका है ब्लावट्स्की। और कोई उससे बहुत महानतर शक्ति उस पर आविष्ट हो गयी है, और वह हवा का झोंका इस सुगंध को ले आया है।’ ‘इस पुस्तक के एक-एक सूत्र को समझपूर्वक अगर प्रयोग किया, तो जीवन से वासना ऐसे झड़ जाती है, जैसे कोई धूल से भरा हुआ आये और स्नान कर ले तो सारी धूल झड़ जाए। या कोई थका-मांदा, किसी वृक्ष की छाया के नीचे विश्राम कर ले और सारी थकान विसर्जित हो जाए।’ ओशो
Weight | 1 kg |
---|
"मन चित चातक ज्यूं रटै, पिव पिव लागी प्यास।
नदी बह रही है, तुम प्यासे खड़े हो; झुको, अंजुली बनाओ हाथ की, तो तुम्हारी प्यास बुझ सकती है। लेकिन तुम अकड़े ही खड़े रहो, जैसे तुम्हारी रीढ़ को लकवा मार गया हो, तो नदी बहती रहेगी तुम्हारे पास और तुम प्यासे खड़े रहोगे। हाथ भर की ही दूरी थी, जरा से झुकते कि सब पा लेते। लेकिन उतने झुकने को तुम राजी न हुए। और नदी के पास छलांग मार कर तुम्हारी अंजुली में आ जाने का कोई उपाय नहीं है। और आ भी जाए, अगर अंजुली बंधी न हो, तो भी आने से कोई सार न होगा।
शिष्यत्व का अर्थ है: झुकने की तैयारी। दीक्षा का अर्थ है: अब मैं झुका ही रहूंगा। वह एक स्थायी भाव है। ऐसा नहीं है कि तुम कभी झुके और कभी नहीं झुके। शिष्यत्व का अर्थ है, अब मैं झुका ही रहूंगा; अब तुम्हारी मर्जी। जब चाहो बरसना, तुम मुझे गैर-झुका न पाओगे।"—ओशो
दरिया के शब्द सुनो, जिंदगी की थोड़ी तलाश करो–‘दरिया कहै सब्द निरबाना।’ ये प्यारे सूत्र हैं, इनमें बड़ा माधुर्य है,...
सूफी बोध – कथाओं पर प्रवचन विश्व के महान् गुरु और तत्वज्ञानी ओशो ने महान् सूफ़ी संतों के बताए मार्गों...
"व्यक्ति बनें, तो ही आप सत्य को जान सकेंगे। और व्यक्ति बनने की पहली आधारशिला यहीं से शुरू होती है कि हम यह जानें कि असंदिग्ध रूप से जो सत्य मेरे निकटतम है, वह मैं हूं। कोई दूसरा मेरे लिए उतना सत्य नहीं है, जितना मैं हूं। कोई दूसरा किसी के लिए सत्य नहीं है--उसकी स्वयं की सत्ता। और वहां प्रवेश करना है। और वहां पहुंचना है। और इसके लिए जरूरी है कि ये जो भीड़ के संगठन हैं, ये जो भीड़ के चारों तरफ आयोजन हैं, उनसे थोड़ा अपने को बचाएं और स्वयं में प्रवेश करें। थोड़ा एकांत खोजें, अकेलापन खोजें, थोड़ी देर अपने साथ रहें।" ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: क्या आप अपने को जानना चाहते है? जीवन की समस्या क्या है? क्या आप स्वतंत्रा चाहते है? क्या है विवेक का मार्ग?
जीवन-रूपांतरण के सात सूत्र "करुणा और क्रांति’--ऐसा शब्दों का समूह मुझे अच्छा नहीं मालूम पड़ता है। मुझे तो लगता है--करुणा यानी क्रांति। करुणा अर्थात क्रांति। कम्पैशन एंड रेवोल्यूशन ऐसा नहीं, कम्पैशन मीन्स रेवोल्यूशन। ऐसा नहीं कि करुणा होगी--और क्रांति होगी। अगर करुणा आ जाए, तो क्रांति अनिवार्य है। क्रांति सिर्फ करुणा की पड़ी हुई छाया से ज्यादा नहीं है। और जो क्रांति करुणा के बिना आएगी, वह बहुत खतरनाक होगी। ऐसी बहुत क्रांतियां हो चुकी हैं। और वे जिन बीमारियों को दूर करती हैं, उनसे बड़ी बीमारियों को पीछे छोड़ जाती हैं।" ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: मनुष्य एक रोग क्यों हो गया है? ध्यान का अर्थ है : समर्पण, टोटल लेट-गो मन के कैदखाने से मुक्ति के उपाय? जिन्दगी के रूपांतरण का क्या मतलब है? करुणा, अहिंसा, दया, प्रेम इन सब में क्या फर्क है?