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₹340.00
Quick Overview
सामग्री तालिका
अनुक्रम
#1: स्वयं की सत्ता का बोध
#2: स्वयं की सत्ता ही सत्य है
#3: स्वयं की खोज
#4: छोड़ें दौड़ और देखें
#5: जागो और देखो
#6: भार क्या है?
#7: पूछें–मैं कौन हूं?
सामग्री तालिका
अनुक्रम
#1: स्वयं की सत्ता का बोध
#2: स्वयं की सत्ता ही सत्य है
#3: स्वयं की खोज
#4: छोड़ें दौड़ और देखें
#5: जागो और देखो
#6: भार क्या है?
#7: पूछें–मैं कौन हूं?
Weight | 0.35 kg |
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सुप्रसिद्ध संत शेख फरीद के कुछ अनूठे पदों के माध्यम से ओशो के दस अमृत प्रवचनों का संकलन। इस वार्तालाप में प्रति दूसरे दिन ओशो ने जिज्ञासुओं की विभिन्न जिज्ञासाओं और प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। ‘शेख फरीद प्रेम के पथिक हैं और जैसा प्रेम का गीत फरीद ने गाया है; वैसा किसी ने नहीं गाया। कबीर भी प्रेम की बात करते हैं, लेकिन ध्यान की भी बात करते हैं। दादू भी प्रेम की बात करते हैं, लेकिन ध्यान की बात को बिलकुल भूल नहीं जाते।
स्वामी ज्ञानभेद की नवीनतम कृति “चल ओशो के गांव में” पढ़ते हुए जब हम प्रकृति के रोमांच को अनुभव करते...
सूफी बोध – कथाओं पर प्रवचन विश्व के महान् गुरु और तत्वज्ञानी ओशो ने महान् सूफ़ी संतों के बताए मार्गों...
"स्वतंत्रता विद्रोह नहीं है, क्रांति है।
क्रांति की बात ही अलग है। क्रांति का अर्थ है : दूसरे से कोई प्रयोजन नहीं है। हम किसी के विरोध में स्वतंत्र नहीं हो रहे हैं। क्योंकि विरोध में हम स्वतंत्र होंगे, तो वह स्वच्छंदता हो जाएगी। हम दूसरे से मुक्त हो रहे हैं--न उससे हमें विरोध है, न हमें उसका अनुगमन है। न हम उसके शत्रु हैं, न हम उसके मित्र हैं--हम उससे मुक्त हो रहे हैं। और यह मुक्ति, ‘पर’ से मुक्ति, जिस ऊर्जा को जन्म देती है, जिस डाइमेन्शन को, जिस दिशा को खोल देती है, उसका नाम स्वतंत्रता है।"—ओशो
"अंधेरा हटाना हो, तो प्रकाश लाना होता है। और मन को हटाना हो, तो ध्यान लाना होता है। मन को नियंत्रित नहीं करना है, वरन जानना है कि वह है ही नहीं। यह जानते ही उससे मुक्ति हो जाती है।
यह जानना साक्षी चैतन्य से होता है। मन के साक्षी बनें। जो है, उसके साक्षी बनें। कैसे होना चाहिए, इसकी चिंता छोड़ दें। जो है, जैसा है, उसके प्रति जागें, जागरूक हों। कोई निर्णय न लें, कोई नियंत्रण न करें, किसी संघर्ष में न पड़ें। बस, मौन होकर देखें। देखना ही, यह साक्षी होना ही मुक्ति बन जाता है।
साक्षी बनते ही चेतना दृश्य को छोड़ द्रष्टा पर स्थिर हो जाती है। इस स्थिति में अकंप प्रज्ञा की ज्योति उपलब्ध होती है। और यही ज्योति मुक्ति है।"—ओशो
जीवन-रूपांतरण के सात सूत्र "करुणा और क्रांति’--ऐसा शब्दों का समूह मुझे अच्छा नहीं मालूम पड़ता है। मुझे तो लगता है--करुणा यानी क्रांति। करुणा अर्थात क्रांति। कम्पैशन एंड रेवोल्यूशन ऐसा नहीं, कम्पैशन मीन्स रेवोल्यूशन। ऐसा नहीं कि करुणा होगी--और क्रांति होगी। अगर करुणा आ जाए, तो क्रांति अनिवार्य है। क्रांति सिर्फ करुणा की पड़ी हुई छाया से ज्यादा नहीं है। और जो क्रांति करुणा के बिना आएगी, वह बहुत खतरनाक होगी। ऐसी बहुत क्रांतियां हो चुकी हैं। और वे जिन बीमारियों को दूर करती हैं, उनसे बड़ी बीमारियों को पीछे छोड़ जाती हैं।" ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: मनुष्य एक रोग क्यों हो गया है? ध्यान का अर्थ है : समर्पण, टोटल लेट-गो मन के कैदखाने से मुक्ति के उपाय? जिन्दगी के रूपांतरण का क्या मतलब है? करुणा, अहिंसा, दया, प्रेम इन सब में क्या फर्क है?
#1: हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं #2: अज्ञात की पुकार #3: सहजै रहिबा #4: अदेखि देखिबा #5: मन मैं रहिणा #6:...