UPANISHAD
Samadhi Kamal 08
Eighth Discourse from the series of 15 discourses – Samadhi Kamal by Osho.
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आज की रात तो हम विदा होंगे। इन तीन दिनों में बहुत सी बातें कही हैं। और इतने प्रेम से, इतनी शांति से आपने उन्हें सुना है कि उनका परिणाम निश्चित होगा। वे आपके भीतर जाकर बीज बनेंगी और आपके जीवन में उनसे कुछ हो सकेगा।
इस आशा में ही उन बातों को मैं कहा हूं। और जीवन की एक संक्षिप्त व्यवस्था साधक की कैसी हो, उसकी रूपरेखा आपके सामने स्पष्ट हुई होगी। यह भी लगा होगा कि क्या करने जैसा है। अब यह आपके ऊपर है कि जो प्रीतिकर लगा है वह जीवन का हिस्सा हो जाए।
मनुष्य की कमजोरी यह नहीं है, यह बिलकुल नहीं है कि वह पहचान नहीं पाता कि क्या ठीक है। कमजोरी वहां है जहां वह पहचान करने के बाद भी, जो गलत है, उस पर ही चले चला जाता है। बहुत दिन गलत के भीतर रहने पर गलत से भी मोह हो जाता है। एक कैदी को बहुत दिन जेल के भीतर बंद रहने पर कारागृह से भी मोह हो जाता है।
फ्रांस की क्रांति में एक घटना घटी। वहां वेसटाइल का किला है, वहां फ्रांस के सारे बड़े और पुराने कैदी रखे जाते थे, जिनकी आजीवन कारावास की सजा हो, या मृत्यु की सजा हो, या और लंबी सजाएं हों। जब फ्रांस में क्रांति हुई तो क्रांतिकारियों ने सत्ता को उलट दिया और सोचा वेसटाइल के किले को तोड़ दें, ताकि जो आजन्म से वहां बंद हैं वे मुक्त हो जाएं। उन्होंने सोचा कि इससे कारागृह के लोग बड़े प्रसन्न होंगे। उनकी मुक्ति का आनंद अपरिसीम होगा। वे गए और उन्होंने कारागृह को तोड़ दिया, बंदियों को मुक्त कर दिया और उनसे कहा, अब तुम कारागृह के बाहर हो! अब तुम स्वतंत्र हो! अब तुम मुक्त हो! वे खड़े होकर सुनते रहे, उनकी कुछ समझ में नहीं आया। कोई उसमें तीस वर्ष से बंद था, कोई चालीस वर्ष से, उसमें ऐसे भी थे जो पचास वर्षों से बंद थे। उन्होंने सुना, लेकिन उनकी समझ में नहीं आया। उनमें से किसी ने पूछा, आप क्या कहते हैं? क्या कारागृह टूट गया? क्या हम मुक्त हैं? क्या यह संभव है? क्रांतिकारियों ने कहा, देखते नहीं दीवालें तोड़ दी हैं! देखते नहीं सब व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गई है! तुम जा सकते हो।
वे बहुत डरे हुए, बहुत घबड़ाए हुए से बाहर निकले, अविश्वस्त, उन्हें विश्वास नहीं था। और सबसे बड़ी हैरानी की जो बात हुई, जो मनुष्य के इतिहास में कभी पहले नहीं हुई थी, सांझ को उनमें से आधे से ज्यादा कैदी वापस लौट आए। उन्होंने कहा, बाहर अच्छा नहीं लगता है। उन्होंने कहा, बाहर अच्छा नहीं लगता है, हम यहीं ठीक हैं। अब यहां जिंदगी बीत गई, अब थोड़े-बहुत दिन के लिए और नई व्यवस्था, कौन उलझन दे!
यह आश्चर्यजनक लगता है कि आप कैद में वापस लौट जाएं और कहें कि हम यहीं ठीक हैं, अब जिंदगी यहां बीत गई, अब कौन नई व्यवस्था के झंझट में पड़े!
पुराने को छोड़ने में, गलत को भी छोड़ने में जो दिख गया हो और ठीक जो दिखाई पड़ता हो उस रास्ते पर भी चलने में एक बड़े दुर्गम साहस की जरूरत होती है।
धार्मिक आदमी का जीवन साहस से निर्मित होता है और साहस से बनता है। जो अतीत के प्रति मुंह मोड़ सकता है और जो गलत रास्ते को देख कर बीच रास्ते से लौट सकता है, हो सकता है बुरा होता हो, लेकिन जो उसे व्यर्थ दिख जाए वह उसे छोड़ने का साहस कर सकता है, वह अभी युवा है, अभी वह बूढ़ा नहीं हुआ, अभी उसमें साहस है, अभी उसके जीवन में कोई क्रांति घटित हो सकती है। साहस के बिना कोई मनुष्य धार्मिक नहीं हो सकता है। कमजोर, साहसहीन धार्मिक नहीं हो सकते हैं।
लेकिन हम देखते क्या हैं? हम देखते हैं कि जितने साहसहीन हैं वे सब धार्मिक दिखाई पड़ते हैं और जितने कमजोर हैं वे सब धार्मिक हो जाते हैं। उनका धर्म भय से निकलता है, घबड़ाहट से, सुरक्षा की आकांक्षा से निकलता है। वे धार्मिक नहीं हो सकते हैं।
महावीर ने कहा है: अभय धार्मिक आदमी की बुनियाद है, आधार है। फियरलेसनेस, जो उस अभय पर अपने को खड़ा करेगा वह सत्य तक पहुंच सकता है। जो भय पर अपने को खड़ा करेगा वह सत्य तक नहीं पहुंच सकता।
एक साहस चाहिए कि हम प्रयोग कर सकें, एक हिम्मत चाहिए कि हम उस भूमि में चल सकें जिसमें हम कभी नहीं चले और उन रास्तों पर पैर रख सकें जो पगडंडियां बिलकुल अपरिचित हैं। जो परिचित के, जो नोन के, जो ज्ञात के घेरे में घूमेगा वह कभी धर्म में प्रवेश नहीं कर सकता। अज्ञात में, अननोन में, जो अपरिचित है, अनजान है, उस रास्ते पर जिस पर हमारे पैर कभी नहीं पड़े, जो उन पर पैर रखने का साहस नहीं कर सकता वह कभी धर्म में प्रवेश नहीं कर सकता।
तो धर्म के लिए एक आधारभूत साहस की जरूरत है। एक ऐसे साहस की कि हम अपरिचित में प्रवेश कर सकें। अपरिचित भय देता है। असल में भय अपरिचित से होना स्वाभाविक है। अनजान रास्ते, जिनसे हम परिचित नहीं हैं। और सबसे अनजान रास्ता एक ही है वह आत्मा का रास्ता है, उससे हम बिलकुल परिचित नहीं हैं। इस जगत में उतना अनजान रास्ता कोई भी नहीं है। उतना अपरिचित, उतना अंधेरा, उतना पता नहीं आगे क्या हो, उतना अकेला कि साथ कोई भी नहीं है, उतना अकेला रास्ता कोई भी नहीं है। इसलिए उस अकेलेपन से बचने के लिए, उस साहस से बचने के लिए, उस हिम्मत से, जो अज्ञात में छलांग लेने के लिए करनी पड़ती है, हमने ऐसे झूठे धर्म के नाम पर सामाजिक व्यवस्थाएं बना ली हैं जिनमें साहस की कोई जरूरत नहीं है। हमने ऐसे थोथे क्रियाकांड बना लिए हैं जिनमें साहस की कोई जरूरत नहीं है। हमने धर्म की ऐसी सस्ती शक्ल बना ली है जिसमें साधना की कोई जरूरत नहीं है। वह हमने इसलिए किया है ताकि हम अपने को एक धोखा दे सकें कि हम धार्मिक हो रहे हैं और धार्मिक होने का जो साहस हमें करना पड़े उससे भी बच जाएं।
तो हमने कैसे-कैसे सस्ते उपाय निकाल लिए हैं! हमने उपाय निकाल लिए हैं बहुत ही सस्ते और हम अपने को धोखा दे लेते हैं कि इस भांति हम धार्मिक हो गए। जब कि हम धार्मिक नहीं हुए, हमने केवल एक बड़े साहस से अपने को बचा लिया है और हमने एक थोथा आवरण ओढ़ लिया है। सस्ते में–कोई टीके लगा कर, कोई मंदिर जाकर, कोई पोथी बगल में दबा कर, कोई कपड़े ऐसे-वैसे पहन कर–इस भांति हम अपने को धोखा दे लें, लेकिन यह धोखा घातक है। और यह घातक इसलिए है कि जीवन का विश्वास नहीं है। अभी हम आज यहां विदा होते हैं, नहीं कहा जा सकता हम फिर दुबारा मिल सकें। नहीं कहा जा सकता यह दुबारा मिलना फिर हो। यह जमीन की यात्रा इतनी अजीब है कि रास्तों पर जिनसे हम मिलते हैं, कौन जाने रास्ते दुबारा उनसे कटेंगे या नहीं कटेंगे!
मैं अभी एक जगह था, एक यात्रा पर था। वर्षा थी, एक नाले से निकलते थे, तो कार आगे नहीं जा सकी, नाले पर पूर था, तो दो घंटे तक वहां रुकना पड़ा। मेरे पीछे दो गाड़ियां और आकर रुकीं, वे भी नहीं जा सकीं। जो उनमें थे, अपरिचित थे। मुझे वहां बैठा देख कर सहज मेरे पास चले आए, उनसे कुछ बातें हुईं, उनसे मैं कुछ बात किया। दो-ढाई घंटे वहां रुकना पड़ा। वे मुझसे बोले, आपकी बातें बड़ी प्रीतिकर हैं और बड़ा सौभाग्य हुआ कि उनको हमने सुना और कभी समय मिला तो हम उन पर जरूर प्रयोग करेंगे।
मैंने उनसे कहा, वे बातें अगर प्रीतिकर होतीं और वे बातें अगर सौभाग्य मालूम होतीं, तो आप यह न कहते कि कभी समय मिला तो उनको करेंगे। यह असंभव था। अगर वे प्रीतिकर होतीं, अगर वे सौभाग्य मालूम होतीं, तो वे इसी क्षण करने जैसी लगतीं। क्योंकि जब समय मिलेगा तब उन्हें करेंगे, तो बीच में जो करते रहेंगे वह ज्यादा सौभाग्यपूर्ण होगा, ज्यादा महत्वपूर्ण होगा; उसे पहले कर लेंगे, फिर इन्हें बाद में देखेंगे।
फिर मैं उनसे कहा कि यह स्मरण रहे कि हम अजीब लोग हैं! जो क्षुद्र है, जो व्यर्थ है, उसे हम रोज निबटा लेते हैं। जो विराट है, जो सार्थक है, उसे कल पर टाल देते हैं। और अक्सर वह कल कभी नहीं आ पाता है। बहुत कम जीवन हैं जिनमें वह कल आता है जब हम विराट को करें। क्योंकि क्षुद्र तो रोज मौजूद है। वह चुक नहीं जाएगा, क्षुद्र रोज मौजूद है। जो प्यास आज लगी, कल भी लगेगी; जो भूख आज लगी, वह कल भी लगेगी; जो कपड़े आज पहनने पड़े, वे कल भी पहनने पड़ेंगे; जिस मकान में आज रहना पड़ा, कल भी रहना पड़ेगा। जो आज है वह कल भी होगा। क्षुद्र रोज खड़ा हो जाता है, वह विलीन नहीं होता। क्षुद्र के साथ एक खूबी है, आप उसे कितना ही विलीन करें, वह नित-नवीन, उतना का उतना, शायद ज्यादा भी खड़ा हो जाता है। वह कभी समाप्त नहीं होता, वह नित-नूतन हो जाता है। अगर उसके कारण आज समय नहीं मिल रहा है, तो कल भी समय नहीं मिलेगा, परसों भी समय नहीं मिलेगा। और जिंदगी जितनी थकने लगेगी, उतनी शक्ति तो कम हो जाएगी और उलझन उतनी की उतनी बनी रहेगी। जो कल पर टालता है, वह हमेशा पर टाल रहा है। उनसे मैंने यह कहा।
वे बोले, यह बात तो ठीक लगती है, जरूर मैं विचार करूंगा।
मैंने कहा, आप जब भी, जो भी कह रहे हैं, फिर भी कह रहे हैं विचार करूंगा, तो आप फिर टाल रहे हैं। यह भी हो सकता है, मैंने उनसे कहा, कि कल हम न हों। यह हो सकता है, इस जमीन पर बहुत से लोग कल सुबह होते-होते न हो जाएंगे, उनमें हमारी संख्या भी हो सकती है। और एक दिन तो हमारी संख्या होगी। एक दिन तो यह होगा कि हम होंगे, एक रात होंगे और दूसरे दिन सुबह नहीं होंगे। यह तो निश्चित है। एक दिन कल हमें नहीं आएगा, आज अंतिम होगा। वह आज भी हो सकता है।
वे काफी खुश थे। वे बोले, ठीक है। फिर वह नाला उतर गया। वे मुझसे पहले निकल गए, उनके पीछे मैं निकला। कुछ गाड़ी में हमारे चाक खराब हुआ, उस तरफ रुक कर उसे बदलना पड़ा, कोई पंद्रह मिनट लगे होंगे। पंद्रह मिनट बाद हम पहुंचे, दो मील के फासले पर वे तो समाप्त थे, वह तो गाड़ी टकरा गई थी, वे तो तीन लोग थे, तीनों ही समाप्त हो गए। अभी पंद्रह मिनट पहले हम उनसे बात किए कि यह हो सकता है कि कल न हो–और पंद्रह मिनट बाद हमने पाया कि उन तीनों का कल नहीं है।
मेरे साथ जो ड्राइवर था उसने कहा, यह तो बड़ी अनहोनी बात है! मैं आप लोगों की बात सुनता था। ज्यादा मैं नहीं समझा, इतना मैं समझा कि कल निश्चित नहीं है। और यह तो, यह तो क्या हो गया?
अब कोई रास्ता न था कि मैं उनसे कहूं कि जो आप करना चाहते थे उसे कर लें। अब कोई रास्ता नहीं था कि मैं उनको समझाऊं कि जो मैंने कहा था करने को उसे पकड़ लें, उसे जी लें, अब कोई रास्ता नहीं था।
इतना ही आज अंतिम दिन मुझे आपसे कहना है: ऐसा न हो कि आप उस जगह हों कि फिर आपसे कहने को समय न रह जाए कि कर लें। उसके पहले कर लेना उचित है, उसके पहले कर लेना जरूरी है। उसके पहले जीवन के सत्य के प्रति और जीवन के आत्मिक स्वरूप के प्रति प्रगति, उस दिशा में चल लेना जरूरी है। उस चल लेने के अदभुत फायदे हैं। मृत्यु आ जाए तो हम उसे न कर पाएंगे और अगर हम उसे कर लें तो मृत्यु नहीं आएगी। मृत्यु आ जाए तो हम उसे नहीं कर पाएंगे और अगर हम उसे कर लें तो मृत्यु नहीं आएगी।
आप कहेंगे, पहली बात तो ठीक लगती है, दूसरी बात आज तक ऐसा तो हमने कभी नहीं देखा कि किसी की मृत्यु न आई हो। महावीर की भी आ जाती है, बुद्ध की भी आ जाती है, कृष्ण की भी आ जाती है–मृत्यु तो सबकी आ जाती है।
लेकिन मैं आपसे कहता हूं, अगर उसे कर लें तो मृत्यु नहीं आती है। महावीर की मृत्यु हमको दिखती है, महावीर को नहीं दिखती। बुद्ध की मृत्यु हमको दिखती है, बुद्ध को नहीं दिखती। उन्हें दिखता है: जो मर रहा है वह वे नहीं हैं और जो वे हैं उसकी कोई मृत्यु संभव नहीं है। मृत्यु के पहले जो अपने में प्रवेश कर जाए वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है, उसकी मृत्यु नहीं होती है।
तो यह अदभुत है! यह अदभुत है, जो जान ले वह मृत्यु से बच जाता है; और जोकल पर टालता रहे उसे मृत्यु पकड़ लेती है, वह ज्ञान से बच जाता है। ज्ञान और मृत्यु विरोधी हैं। आत्मज्ञान मृत्यु विरोधी है। होगा, शरीर तो गिरेगा, लेकिन हम उसे जानेंगे जो शरीर नहीं है, जो हमारी सत्ता है, और वह नहीं गिरेगा।
अमृत को अनुभव कर लेना जीवन की उपादेयता है। जो अमृत को अनुभव नहीं कर पाता उसे जानना चाहिए कि वह जीया नहीं, वह केवल धीरे-धीरे मरता रहा है। मैं जिस दिन पैदा हुआ, लोग समझते हैं कि मैं उस दिन पैदा हुआ। अब मुझे दिखाई पड़ता है कि मैं उसी दिन से मरना शुरू हो गया हूं। मैं उस दिन से मर रहा हूं निरंतर, रोज-रोज, हर क्षण। अभी तीन दिन यहां था, तीन दिन–तीन दिन और मरा। ऐसा रोज मरता जाऊंगा। एक दिन मरण की क्रिया पूरी हो जाएगी।
तो हम जिसे जीवन कह रहे हैं वह जीवन नहीं है। वह ग्रेजुअल डेथ, वह क्रमिक मृत्यु है, क्रमिक मृत्यु है। रोज-रोज मरते जाते हैं जन्म के बाद, फिर एक दिन ये सब मृत्यु पूरी हो जाती है, उसे हम मरण कहते हैं। मरण कोई घटना नहीं, एक विकास है। इसे जीवन न समझें। और इसलिए मैं कहता हूं कि जीवन न समझें–अगर यह जीवन हो तो इसकी परिसमाप्ति पर मृत्यु कैसे हो सकती है?
जीवन और मृत्यु तो विरोधी बातें हैं। जीवन के बीज बोएं और मृत्यु का फल लगे, तो थोड़ा शक होना चाहिए कि जिन बीजों को हम जीवन समझते रहे वे जीवन के न रहे होंगे, वे मृत्यु के ही रहे होंगे। क्योंकि जो फल में लगता है वह बीज में उपस्थित होता है। जो अंत में आता है वह प्रारंभ में मौजूद होता है, तभी आ सकता है, अन्यथा नहीं आ सकता है। तो जिसके अंत में मृत्यु आती है, मैं आपको कह दूं, वह प्रारंभ से मृत्यु है, अन्यथा अंत में मृत्यु हो कैसे जाती? तो जिसे हम जीवन कहते हैं वह जीवन नहीं है। जीवन का प्रारंभ तो स्वयं की सत्ता को जानने से होता है।
मनुष्य के दो जन्म होते हैं। एक जन्म है जो देह का है, जो मां-बाप देते हैं। उस देह के जन्म को हम जीवन समझ लें तो हम गलती में हैं। देह का जन्म जीवन नहीं है। एक दूसरा जन्म है जो साधना से उपलब्ध होता है। और उस जन्म के माध्यम से हम आत्मिक सत्ता को, स्वसत्ता को अनुभव करते हैं। जीवन वहीं से प्रारंभ होता है।
लोग समझते हैं कि जन्म और मृत्यु के भीतर जीवन घिरा है। और मैं आपसे कहूं कि जन्म और मृत्यु के भीतर जीवन नहीं घिरा है। जो जीवन है उसका न तो जन्म है और न उसकी मृत्यु है। जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु निश्चित है। तो जीवन का न तो जन्म होता है और न मृत्यु होती है। जन्म और मृत्यु जीवन के नहीं हैं, देह के हैं।
देह बिलकुल भी जीवन नहीं है, देह बिलकुल मिट्टी है। उसके भीतर कोई जीवन है जो उससे प्रकट हो रहा है और हमें धोखा दे रहा है कि देह जीवन है। जैसे इस बिजली के बल्ब से भीतर से प्रकाश निकल रहा है और हम धोखे में पड़ जाएं कि यह जो कांच का घेरा है यह प्रकाश दे रहा है। यह कांच का घेरा बिलकुल प्रकाश नहीं दे रहा। प्रकाश भीतर है, यह कांच का घेरा केवल उसे पार आने दे रहा है, यह ट्रांसपैरेंट है। यह देह ट्रांसपैरेंट है केवल जीवन के लिए, यह जीवन नहीं है। यह जीवन को बाहर आने देती है, यह पारदर्शी है। और इससे धोखा हो जाता है और लगता है यह जीवन है।
उस सत्य को, जो हमारे भीतर है, देह से भिन्न है, पृथक है, उसे जान लेने पर जीवन का अनुभव होता है। और जीवन का अनुभव होते ही जन्म और मृत्यु भ्रम हो जाते हैं, झूठे हो जाते हैं।
तब हम अमृत को जानते हैं, तब हम उसे जानते हैं जो हमारा होना है। उसे जान लेना ही जीवन की सार्थकता है। जो उसे नहीं जानता, वह समझे कि उसने जीवन को व्यर्थ गंवा दिया है। यह मैं किसी और से नहीं कह रहा हूं, यह मैं बिलकुल आपसे कह रहा हूं, निपट आपसे–कि इसे अपने भीतर समझें। यह कोई मेरा भाषण नहीं है। और पूरे तीन दिन मैंने कोशिश नहीं की कि आपको कोई भाषण दूं, कोई उपदेश नहीं दिया है। जो मुझे लगता है, जो मुझे दिखाई पड़ता है, जो मेरी अंतरात्मा में था, उसे खोला है आपके सामने। और सिर्फ इस खयाल से वह आपसे बातचीत कर रहा हूं और आपसे कह रहा हूं कि दूसरे के लिए नहीं कह रहा हूं कि सोचें, इसे देखें अपने तईं कि अब तक जिसे आपने जीवन समझा है वह जीवन है? अगर नहीं है तो संकल्प को घना होने दें। अगर नहीं है तो संकल्प को दृढ़ होने दें। अगर नहीं है तो साहस लें और हिम्मत करें और अपने जीवन को परिवर्तित करें। उसे एक नई दिशा में गतिमान करें। जो चूक जाएंगे उनके लिए मृत्यु प्रतीक्षा नहीं करेगी।
इसे यूं समझ लें जैसे कि मृत्यु दूसरे ही क्षण हो तो आप क्या करेंगे? और वह दूसरे ही क्षण है! उतना निकट उसे मान कर साहस को जुटाएं, संकल्प को जुटाएं और संलग्न हो जाएं। वह संलग्नता ईश्वर करेगा तो आपमें पैदा होगी, आप चाहेंगे तो जरूर पैदा होगी। वह निपट आपके ऊपर, आपके संकल्प के ऊपर निर्भर है।
इस अंतिम दिवस, और कुछ ज्यादा मैं नहीं कहने को हूं, सिर्फ इतना ही कहने को हूं कि मैंने जो भी कहा है उसे विचार न समझें, उसे अच्छे विचार न समझें, उन्हें सुन कर प्रशंसा करने की, ताली बजाने की कोई भी जरूरत नहीं है। अगर उन्हें सुन कर आपके हृदय में कोई रुदन उठे, कोई घबड़ाहट उठे, कोई संताप हो, कोई पछतावा हो, कोई पश्चात्ताप पैदा हो, तो मैं समझूंगा कि बात पूरी हो गई। उसी पश्चात्ताप, उसी संताप, उसी घबड़ाहट, उसी पीड़ा, उसी प्यास से वह संकल्प जन्म पाएगा जो जीवन को बदल देता है। जो जीवन को मृत्यु से बदल कर अमृत से संयुक्त कर देता है और जो एक द्वार खोलता है जहां हम एक दूसरे राज्य के हिस्से हो जाते हैं, जहां हम एक दूसरे राज्य के सदस्य हो जाते हैं। उस राज्य के सदस्य होने के लिए यह आमंत्रण इन तीन दिनों में मैंने दिया है। सोचता हूं मेरी आवाज आप तक पहुंच गई होगी और वह कहीं आपके मन को ध्वनित करेगी, और कहीं प्रतिध्वनित वह बात रहेगी, और आपके जीवन में कुछ होगा, यह आशा करता हूं और यह कामना करता हूं।
अब हम अंतिम दिवस के रात्रि के ध्यान के लिए बैठेंगे। ध्यान के बाद कोई बात नहीं होगी।